۸۷٬۸۸۶
ویرایش
بدون خلاصۀ ویرایش |
بدون خلاصۀ ویرایش |
||
خط ۱۰: | خط ۱۰: | ||
3.قتل [[نفس زکیه]].<ref>[[شیخ صدوق]]، [[کمال الدین]]، مؤسسةالأعلمی للمطبوعات، ج۲، ص۶۴۹.</ref> | 3.قتل [[نفس زکیه]].<ref>[[شیخ صدوق]]، [[کمال الدین]]، مؤسسةالأعلمی للمطبوعات، ج۲، ص۶۴۹.</ref> | ||
4. خروج [[دجّال]].<ref>علامه مجلسی، بحار الأنوار، ۱۴۰۳ق، ج۵۲، ص۱۸۱؛</ref> <ref>[[قشیري نيشابوري]]، [[صحيح مسلم]]، دار الكتب العلمية، ج۴، ص۲۲-۲۱.</ref> | 4. خروج [[دجّال]].<ref>علامه مجلسی، بحار الأنوار، ۱۴۰۳ق، ج۵۲، ص۱۸۱؛</ref> <ref>[[قشیري نيشابوري]]، [[صحيح مسلم]]، دار الكتب العلمية، ج۴، ص۲۲-۲۱.</ref> | ||
5. رخ دادن جنگها و کشتارها و از میان رفتن نشانههای حق. <ref>[[حائری یزدی]]، [[الزام الناصب]]، مؤسسة الأعلمي للمطبوعات، ص</ref>۱۰۲ به بعد. | 5. رخ دادن جنگها و کشتارها و از میان رفتن نشانههای حق. <ref>[[عبد الکریم حائری یزدی]]، [[الزام الناصب]]، مؤسسة الأعلمي للمطبوعات، ص</ref>۱۰۲ به بعد. | ||
6. ظاهر شدن فساد های بزرگ در دنیا. <ref>[[رجب البرسی]]، [[مشارق انوار الیقین]]، مؤسسة الأعلمي للمطبوعات، ص۷۲.</ref> | 6. ظاهر شدن فساد های بزرگ در دنیا. <ref>[[رجب البرسی]]، [[مشارق انوار الیقین]]، مؤسسة الأعلمي للمطبوعات، ص۷۲.</ref> | ||
7. فراوان شدن هرج و مرج و سست شدن ایمان مردم. <ref>[[ابن کثیر دمشقی]]، [[النهاية فی الفتن والملاحم]]، ۱۴۰۸ق، ص۴۰-۴۱.</ref> | 7. فراوان شدن هرج و مرج و سست شدن ایمان مردم. <ref>[[ابن کثیر دمشقی]]، [[النهاية فی الفتن والملاحم]]، ۱۴۰۸ق، ص۴۰-۴۱.</ref> |